Woman and Salt
numerous kinds of honor there are
veil, stone, wheat
nails of incarceration have been hammered onto honor’s coffin
neither the house nor the footpath is ours
honor is a matter of our subsistence
with honor’s lance we are speared
honor’s speck originates from our tongue
if some night tastes our salt
we are branded bland roti for a lifespan
what kind of a bazaar is this
that the hue-maker himself lays sallow
kites are perishing on the palm of voids
I give birth to children in detention
for lawful offspring the ground should be playful
you bear children in fear thus you have no progeny today
you keep on calling from one embankment of the body
in your stature, a gait has been placed
a beautiful gait
a fake smile has been chiseled on your lips
you haven’t cried since ages
Is a mother like this?
why are your children lying pallid?
which kin’s mother are you?
of rape – of incarceration – of a body riven
or of daughters walled in bricks
your daughters, in bazaars,
knead hunger with their blood
and consume their own flesh
which eyes of yours are these?
what raising of the wall of your house is this?
you placed acquaintance in my laughter
and named your son a coin currently in force
today your daughter tells her daughters
I shall spike my daughter’s tongue
a blood-spitting woman is not a metal-ore
is not a bracelet-thief
the sprawling field is my courage
the ember my desire
we have been born with shrouds tied to our heads
not with rings on our fingers
that you will steal
औरत और नमक
इज़्ज़त की बहुत-सी क़िस्में हैं
घूंघट, थप्पड़, गंदुम
इज़्ज़त के ताबूत में क़ैद की मैंखें ठोंकी गई हैं
घर से लेकर फुटपाथ तक हमारा नहीं
इज़्ज़त हमारे गुज़ारे की बात है
इज़्ज़त के नेज़े से हमें दागा जाता है
इज़्ज़त की कनी हमारी ज़बान से शुरू होती है
कोई रात हमारा नमक चख ले
तो एक जिंदगी हमें बे-जायका रोटी कहा जाता है
ये कैसा बाजार है
की रंगसाज़ ही फीका पड़ा है
ख़ला की हथेली पे पतंगें मर रही हैं
मैं क़ैद में बच्चे जनती हूँ
जाइज़ औलाद के लिए ज़मीन खिलंडरी होनी चाहिए
तुम डर में बच्चे जनती हो इसलिए आज तुम्हारी कोई नस्ल नहीं
तुम जिस्म के एक बंद से पुकारी जाती हो
तुम्हारी हैसियत में तो चाल रख दी गई है
एक ख़ूबसूरत चाल
झूठी मुस्कराहट तुम्हारे लबों पे तराश दी गई है
तुम सदियों से नहीं रोईं
क्या माँ ऎसी होती है
तुम्हारे बच्चे फीके क्यों पड़े हैं
तुम किसी कुन्बे की माँ हो
रेप की, क़ैद की, बटे हुए जिस्म की
या ईटों में चुनी हुई बेटियों की,
बाज़ार में तुम्हारी बेटियाँ
अपने लहू से थूक गूंधती हैं
और अपना गोश्त खाती हैं
ये तुम्हारी कौन-सी आंखें हैं
ये तुम्हारे घर की दीवार की कौन-सी चुनाई है
तुमने मेरी हंसी में तआरूफ़ रखा
और अपने बेटे का नाम सिक्का-ए-राइजुल -वक़्त
आज तुम्हारी बेटी अपनी बेटियों से कहती है
मैं अपनी बेटी की ज़बान दागूँगी
लहू थूकती औरत धात नहीं
चूड़ियों की चोर नहीं
मैदान मेरा हौसला है
अंगारा मेरी ख़्वाहिश
हम सर पे कफ़न बाँध कर पैदा हुए हैं
कोई अंगूठी पहन कर नहीं
जिसे तुम चोरी कर लोगे