ہم دو زمانوں کی درمیانی فصیل پر ملے ہیں
وہ زمانہ جو گزر گیا
اور وہ زمانہ جو آنے والا ہے
وہ زمانہ جس نے ہماری مٹی کو گوندھا، شکل دی، اور ہمارے قالب میں جان ڈالی
اور وہ زمانہ جو ہماری شکل کو مسخ کرے گا، توڑے گا، اوراسے نئے سیال سانچوں میں ڈھالے گا
وہ سانچے جن کا نام و نشان ہمارے وہم و گمان تک میں نہیں ہے
اس متزلزل فصیل پر کھڑے
ہم دونوں
آخر کب تک
لمحۂ موجود کی چوکھٹ پر سربسجود
ایک دوسرے کا ہاتھ تھامے
زمانے کی حدوں کو مسمار کرتے رہیں گے؟
آخر کب تک ہم اس فصیل پر
اپنی تنکا تنکا خواہشوں سے آشیانے بناتے رہیں گے؟
آخر کب تک ہم اپنی سیال تمناؤں کو
زمانے کے چاک پر
اندیکھے، انجانے پیکروں میں ڈھالتے رہیں گے؟
ان زمانوں کا جبر ایک دن ہم کوآ لے گا
یہ فصیل دھندلی ہوتے ہوتے
رات کی تیرگی میں گم ہو جائے گی
اور ہم دونوں
اسی طرح
لمحۂ موجود کی چوکھٹ پر سربسجود
نئے سیال سانچوں میں ڈھل جائیں گے
विसाल होते तक
हम दो ज़मानों की दरमियानी फ़सील पर मिले हैं
वह ज़माना जो गुज़र गया
और वह ज़माना जो आने वाला है
वह ज़माना जिसने हमारी मिट्टी को गोंधा, शक्ल दी और हमारे क़ालिब में जान डाली
और वह ज़माना जो हमारी शक्ल को मसक करेगा, तोड़ेगा, और उसे नए सेयाल सांचो में ढालेगा
वह साँचें जिनका नाम-ओ-निशा हमारे वहमों गुमान तक में नहीं है
उस मुतज़लज़ल फ़सील पर खड़े
हम दोनों
आखिर कब तक
लमहायें मौजूद की चौखट पर सर बसजूद
एक दुसरे का हाँथ थामें
ज़माने की हदों को मिस्मार करते रहेंगे?
आखिर कब तक हम इस फ़सील पर
अपनी तिनका तिनका ख्वाहिशों से आशियाने बनाते रहेंगे?
आखिर कब तक हम अपनी सेयाल तमन्नाओं को
ज़माने के चाँक पर
अनदेखे, अनजाने पैकरों में ढालते रहेंगे?
उन ज़मानों का जब्र एक दिन हमको आ लेगा
यह फ़सील धुंदली होते होते
रात की तीरगी में गुम हो जाएगी
और हम दोनों
उसी तरह
लमहायें मौजूद की चौखट पर सर-ब-सजूद
नए सेयाल सांचों में ढल जायेंगे