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Two Poems by Najwan Darwish

Translated into Hindi by Suman Keshari
Translated into English by Kareem James Abu-Zeid

जेरुसलम (I)

 

तुम्हारे लिए बलि चढ़ाने को

हम चोटी पर खड़े थे

और जब हमने अपने उठे हुए हाथ खाली देखे

तो समझ गए

कि हम ही बलि-पशु हैं

 

मृत्यों को खुद अपनों के ही हाथों मरने दो

केवल तुम ही बचे रहोगे अकेले

वे जो मरने को अभिशप्त हैं

उनकी भ्रमों से भरी इस तीर्थ-यात्रा से

तुम्हें क्या लेना-देना?

 

खाली हाथ उठाए

हम ही बलि-पशु हैं

 

Jerusalem (I)

 

We stood on the Mount

to raise a sacrifice for you

and when we saw our hands rise empty

we knew

that we are your sacrifice

 

Let the mortals fall

in the hands of their fellow mortals

You alone always remain

This confused pilgrimage

of those who are impermanent-

what concern is it of yours?

 

Our hands rise, empty

We are your sacrifice

 

जेरुसलम (II)

 

जब मैं तुमसे जुदा होता हूँ

पत्थर हो जाता हूँ

जब वापस लौटता हूँ

पत्थर हो जाता हूँ

 

मैं तुम्हें मेडुसा  नाम देता हूँ

मैं तुम्हें सोडोम और गोमोरा की बड़ी बहन कहता हूँ

तुम बप्तिस्मा का वह जल हो जिसने रोम को जला कर राख कर दिया

 

पहाड़ों पर मकतूल गीत गुनगुना रहे हैं

और विद्रोही अपनी कहानी सुनाने वाले किस्सागोओं को उलाहने दे रहे हैं

जबकि मैं समुद्र को पीछे छोड़ता तुम्हारे पास लौटा हूँ, लौट आओ

उस पतली धार के पास जो अब कतई नाउम्मीद हो चुकी है

 

मैं कुरान पढ़ने वालों को सुनता हूँ और लाशों के कफ़नों को भी

मैं मातम मनाने वालों के पैरों की धूल को सुनता हूँ

मैं तीस का भी नहीं हुआ और तुमने मुझे कितनी ही बार दफ़ना दिया

और हर बार, तुम्हारी ही खातिर मैं जमीन से निकल आया

भाड़ में जाएँ

वे जो तुम्हारी शान में कसीदे काढ़ते हैं

जो तुम्हारी तकलीफ़ों को स्मृति चिन्ह की तरह बेचा करते हैं

वे सब जो अब चित्र में मेरे साथ खड़े हैं

 

मैं तुम्हें मेडुसा  नाम देता हूँ

मैं तुम्हें सोडोम और गोमोरा की बड़ी बहन कहता हूँ

तुम बप्तिस्मा का वह जल हो जो अब भी जल रहा है

 

जब मैं तुमसे जुदा होता हूँ

पत्थर हो जाता हूँ

जब वापस लौटता हूँ

पत्थर हो जाता हूँ

 

Jerusalem (II)

 

When I leave you I turn to stone

an when I come back I turn to stone

 

I name you Medusa

I name you the older sister of Sodom and Gomorrah

you the baptismal basin that burned Rome

 

The murdered hum their poems on the hills

and the rebels reproach the tellers of their stories

while I leave the sea behind and come back

to you, come back

by this small river that flows in your despair

 

I hear the reciters of the Quran and the shrouders of corpses

I hear the dust of the condolers

I am not yet thirty, but you buried me, time and again

and each time for your sake

I emerge from the earth

So let those who sing your praises go to hell

those who sell souvenirs of your pain

all those who are standing with me, now, in the picture

 

I name you Medusa

I name you the older sister of Sodom and Gomorrah

you the baptismal basin that still burns

 

When I leave you I turn to stone

When I come back I turn to stone

Suman Keshari is a poet and freelance writer. She has published four collections of poems namely Yagyavalkya se Behas, 2008, Monalisa ki Aankhen, 2013, Shabd Aur Sapne (e-book, 2015) and Piramidon ki tho Mein (2018). She is well known for her rewritings of Indian mythological figures such as Draupadi, Karna, Gandhari, Seeta and Savitri. Her poems have been received with much appreciation at forums like ICCR, Sahitya Akademi, Raza Foundation, Benaras Hindu University, Jawaharlal Nehru University, Central University of Gujarat, Bhartiya Jnanapeeth, All India Radio, IIT Mumbai and various literary festivals held at Patna, Ajmer, Bikaner, Dehradoon, Port Blair, among others.

Kareem James Abu-Zeid is an Egyptian-American translator, editor, and writer.