मिर्चें
मिर्चें झाड़ से गुच्छे में
फूट पड़ती हैं आड़ी टेड़ी
कैसी भी हरी झक
लेकिन जब ये सूख जाती हैं
बिन खाद पानी और हवा के
तब ये अकड़ पड़ती है
लाल होकर
अपने तेवर के साथ
एक एक बीज
आग उगलने लगता है जिव्हा पर
और धधक पड़ता है
शरीर की रग रग में
इंकलाब बनकर।।
हरे सांप
हरे सांप, काले सांपों की तरह
गुलामी के पिटारे में नहीं फसते
और न ही छुपने के लिए तलाशते हैं
चूहों के बिल
वे संगठित होकर
फुंकारते हैं दूर से ही अपने दुश्मन को
जो लालच का दूध दिखाकर पुचकारते हैं
वे नकार देते हैं झट से
उन तक पहुंचने वाली कटोरियों को
उन्हें मालूम है
दूध उनके जोश को
होश को
हक़ों और उसूलों को दरकिनार कर
छीन लेगा उनका हौंसला
और जकड़ लेगा अपनी गिरफ्त में
वे बीन की धुन से भी आकर्षित नहीं होते
वे भांप लेते हैं दूर से ही सपेरों की चालसाजी को
और हरी घांस की रहनुमाई में
बुनते हैं अपने वजूद की लड़ाई
वे बिलों में नहीं ठहरते
उनके वास
दरख्तों की टहनियां और हरे पत्तों की छाँव में मिलते हैं
इसलिए वे दूर रहते हैं सपेरों की पकड़ से
वे लड़ते हैं मरते दम तक
अपने हक़ों हुक़ूक़ और आज़ादी के लिए
और बचा लेते हैं
अपने अस्तित्व को शातिर सपेरों से
जो काले सांपों को तमाशा बनाकर
उन्हें रगड़ते आये हैं सदियों से
गुलामों की तरह बड़ी आसानी से।।