द्रौपदी
क्या परिचय दूँ मैं अपना
द्रौपदी… पांचाली… कृष्णा… याज्ञसेनी
सभी संज्ञाएं विशेषण हैं या संबंधसूचक
कभी गौर किया है तुमने
मेरा कोई नाम नहीं!
द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को
पिता को चाहिए था एक योद्धा
और धृष्टद्युम्न के पीछे
यज्ञ की अग्नि से अचानक ही निःसृत मैं
सबको स्तब्ध कर
खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्म
सुई की नोक बराबर भूमि न पाने वालों के औरस
अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि
लाखों लोगों की मृत्यु का कारण मैं रही
और भी कई कहानियाँ बुन ली हैं उन्होंने
महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं
गिड़गिड़ाई नहीं
न माँ के सम्मुख जब उन्होंने बाँट दिया पाँच बेटों में
और न
कुरूसभा में
जहाँ पाँच पाँच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड़ गई
इतिहास गवाह है
मैंने केवल कुछ प्रश्न उठाए
कुछ शंकाएं और जिज्ञासाएं
और तुमने मुझे नाम से ही वंचित कर दिया
क्या परिचय दूँ मैं अपना
द्रौपदी… पांचाली… कृष्णा… याज्ञसेनी
सभी संज्ञाएं विशेषण हैं या संबंधसूचक
कभी गौर किया है तुमने
मेरा कोई नाम नहीं!
Draupadi
(Translated by Linda Hess)
How do I introduce myself?
Have you ever realised –
Draupadi, Panchali, Krishna, and Yagyaseny are
all adjectives or conjunctions and not one of these is a proper noun!
Father had rather wished for a warrior to avenge Dronacharya
Astonishing, surprising everyone I followed Drishtdunm
all at once from the Yagya-agni
The ones who were not thought worthy of land measuring a middle-point,
blame me for the death of millions
they have spun several stories around me
only because never did I cry
nor ever lamented
not even before Kunti-Ma
who distributed me amongst her five sons
nor in the Kurusabha
where I was left alone
in spite of my five husbands
History is witness
That I only raised some questions and
You deprived me even of my name!
कृष्णा
मैं पांचाली पुंश्चली
आज स्वयं को
कऋष्णा कहती हूँ
डंके की चोट!
मुझे कभी म भूलेगी कुरुसभा की अपनी कातर पुकार
और तुम्हारी उत्कंठा
मुझे आवृत्त कर लेने की
ओ! वे क्षण…
बदल गई मैं
सुनो कृष्ण मैंने तुम्हीं से प्रेम किया है
दोस्ती की है
तुमने कहा –
‘अर्जुन मेरा मित्र, मेरा हमरूप, मेरा भक्त है
तुम इसकी हो जाओ’
मैं उसकी हो गई
तुमने कहा –
‘माँ ने बाँट दिया है तुमको अपने पाँचों बेटों में
तुम बँट जाओ’
मैं बँट गई
तुमने कहा –
‘सुभद्रा अर्जुन प्रिया है
स्वीकार लो उसे’
और मैंने उसे स्वीकार लिया
प्रिय! यह सब इसलिए
कि तुम मेरे सखा हो
और प्रेम में तो यह होता ही है!
सब कहते हैं
अर्जुन के मोह ने
हिमदंश दिया मुझे
किंतु मैं जानती हूँ
कि तुम्हीं ने रोक लिए थे मेरे कदम
मैं आज भी वहीं पड़ी हूँ प्रिय
मुझे केवल तुम्हारी वंशी की तान
सुनाई पड़ती है
अनहद नाद सी!
Krishna
(Translated by Aparna Bhagwat)
I, Panchali, depraved as they describe me,
Call myself – Krishna,
from the rooftop!
I can never forget my woeful cries in the Kuru-Sabha,
And your yearning
To cover me up…
Ah! Those moments changed me!
Oh Krishna, I have always loved you and only you,
And you are my sole friend!
You said –
‘Arjun is my friend, my image, my devotee,
You be his.’
And I became his.
You told me –
‘The mother has divided you among her five sons,
You get divided.’
I split myself amidst them all.
You stated –
‘Subhadra is dear to Arjun,
Accept her.’
And I embraced her into our lives.
Dear, all this was done… because,
You are my soul mate.
And to do so…
Is what love is all about!
Everybody talks of my love for Arjun
Which gave me the frostbite,
But I know for sure,
That you made me stay behind.
I still lie there, O Beloved!
Listening to your flute – the anhad nada*…
O my eternal love…
(*Anhad nada – It is the internal sound within the body, signifying spiritual growth (Anahata), there are ten types of sound a spiritual practitioner hears within him/ her, known as dashavida nada, such as the sound of the blowing of conch shell (shankha nada), of flute (venu nada), of bell (ghanta nada), of drums, of string instruments (veena), of trumpet (shehnai), of thunder, of the flow of water, and so on. Hearing such sounds is a sign of spiritual growth).
कल
मैंने तथागत से पूछा
क्या तुमने कल को देखा है?
एक हल्की स्मित कौंधी
मैंने तो बस कल ही को देखा है…
Tomorrow
(Translated by Linda Hess)
Have you ever seen tomorrow?
I asked Tathagat
What else have I known?
answered He with a faint smile
एक निश्चित समय पर
एक निश्चित समय पर नींद खुल जाती है
करवट बदल, चादर लपेट फिर भी सो जाने का लालच परे ढकेल
उठ बैठती है वह
उँगलियाँ चटखाती
दरवाजे से घुस पलंग के दाहिनी ओर सोई वह
पाँवों से टटोल-टटोल स्लीपर ढूँढ लेती है
और सधी उँगलियाँ उठ खड़े होने तक
जूड़ा लपेट चुकी होतीं हैं
चाय का पानी चढ़ाने
कुकर में दाल रखने
डबलरोटी या पराँठा सेकने
सब का एक निश्चित समय है
सब काम समय पर होता है
घड़ी की सुइयों-सा जीवन चलता है
अविराम
एक निश्चित समय पर नहा धोकर
बालों में फूल और माथे पर बिन्दिया
वह सजाती है
और निश्चित समय पर द्वार के आस-पास वह चिड़िया सी मँडराती है
इस टाइम-टेबल वाले जीवन में
बस एक ही बात अनिश्चित है
और वह है उसका खुद से बतिया पाना
खुद की कह पाना और खुद की सुन पाना
अब तो उसे याद भी नहीं कि
उसकी अपने से बात करती आवाज
कैसी सुनाई देती पड़ती है…
कभी सामने पड़ने पर क्या
वह
पहचान लेगी खुद को?
At a definite time
(Translated by Aparna Bhagwat)
She wakes up at a definite time,
Shirking the longing to turn over and wrap herself in a quilt,
She sits up, popping her knuckles.
Her feet feel for her slippers and find them,
and by the time she is up,
her accustomed fingers,
have already rolled her tresses into a neat bun.
Life runs like clockwork for her,
ceaselessly,
to heat the water for tea,
to cook the dal,
to toast a bread or a parantha,
everything is clearly defined,
and to be carried out punctually.
Having bathed at the fixed time
with flowers decked in her hair
bindi on her forehead
she flits about her door
like a restless bird
At a fixed time!
In this life of precise routine
the only uncertain thing is
talking with and listening to herself.
She does not even remember
the sound of her voice…
Would she recognise
who this is
if confronted
with herself?
जाने किस आस में बूंद
ये तो अजब वाकया हुआ
कल सवेरे टीले के बगल से गुजरते हुए
पत्ते पर पड़ी जलबूंद
अचानक पुकारते हुए साथ होली
जाने वह बूंद ओस थी या
पानी किसी आँख का
क्या वह बीत गई थी
या है वह अब भी
मौजूद इस देह में
जाने किस रूप में…
जाने किस आस में…
In an unknown anticipation
(Translated by Aparna Bhagwat)
It was a strange incident!
While passing by a hillock yesterday,
A droplet on a leaf,
Called out and accompanied me.
I wonder if it was a dewdrop,
Or a tear-drop from someone’s eye?
Has it ceased existing or does it still survive?
Present in this constitution,
In an unknown form,
And in some un-apprehended hope…
मोनालिसा
क्या था उस दृष्टि में
उस मुस्कान में कि मन बंध कर रह गया
वह जो बूंद छिपी थी
आँख की कोर में
उसी में तिर कर
जा पहुँची थी
मन की अतल गहराइयों में
जहाँ एक आत्मा हतप्रभ थी
प्रलोभन से
पीड़ा से
ईर्ष्या से
द्वन्द्व से…
वह जो नामालूम सी
ज़रा सी तिर्यक
मुस्कान देखते हो न
मोनालिसा के चेहरे पर
वह एक कहानी है
औरत को मिथक में बदले जाने की
कहानी…
Monalisa
(Translated by the poet)
What was there in the gaze
in the smile
that entangled my heart
swimming across the tear-drop
hiding in the eyelid
I went
deep into the heart
where dwelled a restless soul
burning with
temptation
pain
envy
conflict…
The almost invisible
curved smile
that you see on Monalisa’s face
is actually
a story
of a woman
being transformed
into a myth!